काव्यांशों की व्याख्या
कैमरे में बंद अपाहिज ( रघुवीर सहाय )
काव्यांश 1
हम ...................................पाएगा
भावार्थ : दूरदर्शन पर एक शारीरिक विकलांगता के शिकार व्यक्ति का साक्षात्कार लेते हुए , पत्रकारों के क्रियाकलाप की संवेदनहीनता को दर्शाते हुए कवि कहता है कि एक पत्रकार के तौर पर हम दूरदर्शन पर बोलते हुए एक कमज़ोर व्यक्ति को एक बंद कमरे में ले आते हैं । हम उस व्यक्ति से ज्यादा सामर्थ्यवान और शक्तिशाली हैं , जबकि वह व्यक्ति अपाहिज है । उसके अपाहिजपन का मज़ाक उड़ाते हुए हम उससे पूछते हैं कि अगर आप अपाहिज हैं , तो क्यों अपाहिज हैं ? आप अपना दुःख बताइए । आपका अपाहिजपन तो आपको दुःखी करता होगा । यह देखकर कि अपाहिज व्यक्ति कुछ कहने या रोने की स्थिति में है , कार्यक्रम को प्रस्तुत कर रहा व्यक्ति टेक्नीशियन को निर्देशित कर उसे कैमरे पर इसे बड़ा - बड़ा करके प्रस्तुत करने को कहता है ।
कवि यहाँ व्यंग्यात्मक ढंग से यह इशारा कर देता है कि वह नहीं बता पाएगा । वास्तव में जो दुःखी होता है , वह जल्दी अपने दुःख को सही ढंग से व्यक्त नहीं कर पाता । यह एक स्वाभाविक एक अपाहिज व्यक्ति से उसकी विकलांगता पर प्रश्न करके उसके दुःखों को कुरेदने के पीछे मूल उद्देश्य वास्तव में उस अपाहिज के प्रति सहानुभूति या हमदर्दी को व्यक्त करना नहीं , बल्कि उसके दुःख का सार्वजनिक प्रदर्शन करके लोगों की करुणा एवं दया की भावनाओं को जागृत कर उसका व्यावसायिक लाभ उठाना है । फिर उसी तरह के संवेदनहीन प्रश्नों की श्रृंखला प्रारंभ हो जाती है ; जैसे — आपको क्या दुःख है ? आपका दुःख कैसा है ? जल्दी बताइए ।
कवि यहाँ व्यंग्यात्मक ढंग से यह इशारा कर देता है कि वह नहीं बता पाएगा । वास्तव में जो दुःखी होता है , वह जल्दी अपने दुःख को सही ढंग से व्यक्त नहीं कर पाता । यह एक स्वाभाविक स्थिति है , लेकिन यहाँ तो कार्यक्रम के प्रस्तुतकर्ता का वास्तविक उद्देश्य अपने कार्यक्रम को व्यावसायिक दृष्टि से सफल एवं लोकप्रिय बनाना है । जो पहले से ही दुःखी है , उसे बार - बार उसके दुःख एवं अक्षमता की याद दिलाना अत्यंत कष्टदायक तथा अमानवीय है । इससे व्यावसायिकता बोध से प्रेरित होकर कुछ भी कर गुजरने वालों के सरोकार का पता चलता है ।
काव्यांश 2
सोचिए ..................................जाएगा
भावार्थ : कवि कहता है कि सोचिए , सोचकर बताइए कि अपाहिज होकर आपको कैसा अनुभव होता है ? वास्तव में , यहाँ कवि ने कार्यक्रम प्रस्तुतकर्ता के घृणित उद्देश्य को स्पष्ट करने की कोशिश की है , जो किसी दुःखी और लाचार तथा शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्ति से इस प्रश्न को पूछने में निहित है । वह इस दुःख को भोगकर कैसा महसूस करता है ? जैसा प्रश्न अमानवीयता की हद पार करने जैसा है । वस्तुतः जो दुःखी है , वह तो स्वयं ही इतना आहत होता है कि उसका कुछ न बोल पाना स्वाभाविक है । लेकिन इतना ही नहीं , व्यावसायिक सफलता के लिए आतुर कार्यक्रम प्रस्तुतकर्ता संवेदनशीलता को ताक पर रखकर स्वयं अपंगता को दिखाने वाले इशारे करके अपाहिज व्यक्ति को किसी भी तरह यह कहने के लिए मज़बूर करता है कि वह दुःखी है , क्योंकि उसका अंतिम और एकमात्र उद्देश्य अपाहिज व्यक्ति के माध्यम से लोगों के अंदर करुणा एवं दया की भावना को कुरेद कर उसका व्यावसायिक लाभ उठाना और कार्यक्रम को सफल बनाना है ।
कार्यक्रम को प्रस्तुत करने वाला उसके अपाहिजपन को नाटकीय और हास्यास्पद बना देता है । इसके बाद वह दर्शकों को खुद अपने इशारों द्वारा यह बताना चाहता है कि दुःख या अक्षमता से ग्रस्त होने पर व्यक्ति की स्थिति कैसी हो सकती है ?
वह अपाहिज व्यक्ति से बार - बार प्रश्न करके उसके अपाहिजपन का अहसास कराकर उसे बोलने और रोने पर मज़बूर करते हुए कहता है कि अपंगता को दर्शाने और बताने का यह बेहतर मौका है , जो नहीं रोने पर अपाहिज व्यक्ति के हाथ से निकल जाएगा । वस्तुतः यहाँ प्रश्नकर्ता का केवल एक उद्देश्य है , किसी भी प्रकार से कार्यक्रम को दर्शकों की नज़र में सफल एवं प्रभावशाली बनाना ।
कवि यहाँ स्पष्ट करना चाहता है कि टीवी कैमरे के सामने बैठा अपाहिज व्यक्ति अपनी शारीरिक अक्षमता या दुर्बलता से संभवत : परेशान नहीं हो , उसके मन में कमजोरी का अहसास नहीं हो , तो भी कार्यक्रम पेश करने वाले जबरन उसे इसकी याद दिलाएँगे , क्योंकि जब वह रोएगा , दुःखी होगा , तभी इसे प्रस्तुतीकरण और कार्यक्रम दोनों की सफलता माना जाएगा वास्तव में , सामाजिक उद्देश्य से युक्त कार्यक्रम तभी सफल माना जा सकता है , जब वह अपनी प्रस्तुति से लोगों की करुणा एवं सहानुभूति की भावना को जागृत कर दे | यह एक त्रासदीपूर्ण विडंबना है ।
काव्यांश 3
फिर ........................................धन्यावाद।
भावार्थ : कवि आगे कहता है कि कार्यक्रम का प्रस्तुतकर्ता परदे पर फूली हुई आँख की बड़ी तस्वीर दिखाने और अपाहिज आधारित व्यक्ति के होठों की कसमसाहट अर्थात् पीड़ा को कह पाने और न कह पाने के बीच उसके चेहरे पर उभरा असमंजस , दुःख , बेचैनी को दर्शकों को दिखाने की बात करते हुए दर्शकों से उसे ही अपाहिज व्यक्ति के अपाहिजपन से उत्पन्न वास्तविक पीड़ा मानने के लिए कहता है । कवि के अनुसार , टेलीविज़न पर वक्त की कीमत के बारे में बताकर और अपाहिज की पीड़ा को कुरेद कर उसे रुला देने के पीछे कार्यक्रम के निर्माताओं का केवल एक ही उद्देश्य है कार्यक्रम की व्यावसायिक सफलता और लोकप्रियता । पीड़ित व्यक्ति की मानसिक अवस्था और संवेदना से उनका कुछ लेना - देना नहीं होता । इस तरह सारे सामाजिक नारे और कार्यक्रम व्यावसायिक प्रचार - प्रसार में तब्दील कर दिए जाते हैं ।
उसकी दृष्टि में कार्यक्रम तभी सफल माना जाएगा , जब अपाहिज व्यक्ति और दर्शक दोनों की ही मनोदशा या मनःस्थिति एक जैसी हो जाएगी । अपाहिज व्यक्ति अपनी शारीरिक अक्षमता के गहरे दुःख के कारण प्रस्तुतकर्ता के निर्देश पर रो नहीं पाता , तो वह उसे परदे पर वक्त की कीमत का अहसास कराता है , जैसे पीड़ा को निर्धारित सीमित समय में व्यक्त कर देना उसके लिए अत्यंत ज़रूरी है ।
एक संवेदनशील समाज के लिए यह अत्यंत खतरनाक और भयावह स्थिति है , क्योंकि इससे अमानवीय एवं त्रासद स्थितियाँ पैदा होती हैं , जो सभ्य समाज एवं संवेदनशील मनुष्य , दोनों के लिए समान रूप से कष्टदायी हैं ।