महत्त्वपूर्ण तथ्य ( Facts that Matter )
● हड़प्पा सभ्यता के पश्चात 1500 वर्षों के दीर्घ अंतराल के दौरान उपमहाद्वीप के विभिन्न भागों में कई प्रकार के विकास हुए । उदाहरणस्वरूप ऋग्वेद का लेखन , कृषक बस्तियों का उदय , चरवाहा बस्तियों का उदय , अंतिम संस्कार के नए - नए तरीकों का ईजाद , प्रारंभिक राज्यों , साम्राज्यों और रजवाड़ों का विकास तथा नगरों का उदय आदि ।
• इसके विकास को समझने के मुख्य स्रोत अभिलेख , ग्रंथ , सिक्के तथा चित्र हैं ।
• ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों का सर्वप्रथम अर्थ जेम्स प्रिंसेप ने निकाला ।
● अशोक के अभिलेख मुख्यतः ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों में हैं । इन लिपियों का उपयोग सिक्कों में भी किया गया ।
• छठी शताब्दी ई ० पू ० को आरंभिक भारतीय इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन काल माना जाता है । इस समय को प्रायः आरंभिक नगरों , राज्यों , लोहे के बढ़ते उपयोग तथा सिक्कों के विकास के साथ जोड़ा जाता है । इसी समय बौद्ध तथा जैन धर्म सहित अनेकानेक दार्शनिक विचारधाराओं का उदय हुआ ।
• बौद्ध तथा जैन धर्म के ग्रंथों में महाजनपद के नाम से सोलह राज्यों का उल्लेख मिलता है । हालाँकि इन ग्रंथों में इन महाजनपदों के नामों में एकरूपता नहीं है वैसे वज्जि , मगध , कोशल , कुरु , पंचाल , गांधार और अवन्ति जैसे नामों में एकरूपता है ।
• मगध अर्थात आधुनिक बिहार छठी से चौथी शताब्दी ई ० पू ० में सर्वाधिक शक्तिशाली महाजनपद बन गया । आधुनिक इतिहासकार इसके कई कारण मानते हैं - लोहे के विशाल भंडार , हाथियों की प्रचुरता , सुगम और सस्ता आवागमन तथा राजाओं की दूरदर्शिता एवं महत्त्वाकांक्षा ।
• सोलह महाजनपदों में से कुछ गणराज्य थे तो कुछ राजतंत्र । वाज्जि , कुरु , मल्ल तथा शूरसेन आदि गणराज्य थे और मगध , वत्स . अवन्ति तथा कोशल प्रसिद्ध राजतंत्र गणराज्यों में जनता के प्रतिनिधि शासन करते थे और राजतंत्र में वंशक्रमानुगत राजा राज्य करते थे ।
• भगवान महावीर तथा भगवान बुद्ध का संबंध गणों से था ।
• चंद्रगुप्त मौर्य मौर्य वंश का संस्थापक था । उसने 321 ई ० पू ० में मौर्य वंश की स्थापना की थी । उसका राज्य पश्चिमोत्तर में अफगानिस्तान और बलोचिस्तान तक फैला था ।
• चंद्रगुप्त का पौत्र अशोक मौर्य वंश का सबसे तेजस्वी और प्रतापी राजा हुआ जिसने कलिंग पर विजय प्राप्त की ।
• अशांक के अभिलेखों के अनुसार मौर्य साम्राज्य के पाँच प्रमुख राजनीतिक केंद्र थे - राजधानी पाटलिपुत्र और चार प्रातीय केंद्र - तक्षशिला , उज्जयिनी , तोसलि , तथा सुवर्णगिरी ।
• मेगस्थनीज ने सैनिक संचालन के लिए एक समिति और छह उपसमितियों का वर्णन किया है । इनमें पहली का काम नौसेना संचालन , दूसरी का काम यात और खानपान का संचालन , तीसरी का काम पैदल सैनिकों का संचालन तथा चौथी , पाँचवीं , छठी का काम क्रमश : अश्वारोहियों , रथारोहियों एवं हाथियों का संचालन करना था । हालाँकि इनमें से दूसरी उपसमिति का काम सबसे महत्त्वपूर्ण था ।
• मौर्यकाल के उत्तरार्ध में राजा अपनी उच्च स्थिति दर्शाने के लिए अपने आपको को दैवी स्वरूप में प्रस्तुत करने लगे । इसी लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए कुषाण शासकों ने स्वयं की विशाल मूर्तियाँ बनवाई और अपने नाम के साथ देवपुत्र को उपाधि का उपयोग किया ।
● मौर्य साम्राज्य प्राचीन भारत में स्थापित साम्राज्यों में सबसे पहला और सर्वाधिक विशाल साम्राज्य था । मौर्यकाल के इतिहास को जानने के महत्त्वपूर्ण साधन हैं - मेगस्थनीज की इंडिका , अर्थशास्त्र , विशाखादत का मुद्राराक्षस , जैन तथा बौद्ध धर्म ग्रंथ , पुराण , उत्कीर्ण लेख एवं सिक्के तथा भवन - स्मारक आदि ।
• इलाहाबाद स्तंभ अभिलेख के नाम से प्रसिद्ध प्रयोग प्रशस्ति की रचना हरिषेण जो संभवत : गुप्त सम्राटों में सर्वाधिक शक्तिशाली सम्राट समुद्र गुप्त के राज कवि थे , ने संस्कृत में की थी ।
• एक अभिलेख के अनुसार सुदर्शन झील का निर्माण मौर्यकाल में एक स्थानीय राज्यपाल ने करवाया । इसकी मरम्मत रुद्रदमन तथा एक गुप्त शासक ने कारवाई ।
● मौर्यकाल के उत्तरार्ध में लोहे के हलो तथा कृत्रिम सिंचाई के साधनों के विकसित होने से कृषि उत्पादन में काफी वृद्धि हुई । इससे राजाओं की आमदनी बढ़ी ।
• अभिलेखों में ईसवी को प्रारंभिक शताब्दियों से ही भूमिदान के प्रमाण मिलते हैं । इस प्रकार के दान राजाओं अथवा सरदारों द्वारा धार्मिक संस्थाओं या ब्राह्मणों को दिए जाते थे । दान में दी गई भूमि को ' अग्रहार ' कहते थे । इस पर दान पाने वाले का पूर्ण अधिकार होता है ।
• अधिकांश ग्रामीण प्रजा कृषक थी । इनसे राजा अधिक - से - अधिक कर वसुलने के लिए बल का भी प्रयोग करता था । परिणामस्वरूप राजा और कृषकों के संबंध तनावपूर्ण होते थे ।
• बाणभट्ट कन्नौज के शासक हर्षवर्धन का राजकवि था । हर्षवर्धन की जीवनी ' हषचरित ' उसी की रचना है ।
● मनुस्मृति प्राचीन भारत का सर्वाधिक प्रसिद्ध विधि ग्रंथ है । इसकी रचना 200 ई ० पू ० से 200 ई ० के बीच संस्कृत भाषा में हुई थी । इस ग्रंथ में राजाओं को मशविरा दिया गया कि भूमि विवादों से बचने हेतु अपनी - अपनी सीमाओं की पहचान बनाकर रखनी चाहिए
• उत्पादकों और व्यापारियों के संघ को श्रेणी कहा जाता था । ये श्रेणियाँ भारी मात्रा में कच्चा माल खरीदती थीं और उससे अनेक तरह के समान बनाकर बाजार में बेचती थीं ।
• छठी शताब्दी ई ० पू ० के राजाओं ने आहत सिक्के जारी किए । ये सिक्के चाँदी तथा ताँबे के बने हुए थे । इन सिक्कों पर प्रतीकों को आहत करके बनाया जाता था । सिक्कों के प्रचलन से व्यापार के लिए विनिमय काफी सरल हो गया ।
• शासकों के नाम तथा चित्र के साथ सबसे पहले सिक्के हिंद - यूनानी शासकों ने जारी किए । ये शासक दूसरी शताब्दी ई ० पू ० में उपमहाद्वीप के पूर्वोत्तर क्षेत्र में शासन करते थे ।
• कुषाण शासकों ने प्रथम शताब्दी ई ० पू ० में सोने के सबसे प्रथम सिक्के जारी किए । इन सिक्कों का आकार - प्रकार और वजन तत्कालीन ईरान के पार्थियन शासकों तथा रोमन सम्राटों द्वारा जारी सिक्कों के बिलकुल समान था ।
• अशोक ने ' देवानापिय ' तथा ' पियदस्सी ' की उपाधियाँ धारण कीं । देवानापिय का तात्पर्य है - देवताओं का प्रिय तथा ' पियदस्सी ' का तात्पर्य है देखने में सुंदर ।
• अशोक के सिंह शीर्ष को आज भारत सरकार ने राष्ट्रीय चिह्न के रूप में अपनाया है । यह भारतीयों की वीरता , एकता , प्रगति तथा उच्च आदर्शों का प्रतीक है ।
महत्त्वपूर्ण शब्द ( Words that Matter )
1. अभिलेखशास्त्र अभिलेखों के अध्ययन को अभिलेखशास्त्र कहते हैं ।
2. अभिलेख जो पत्थर , धातु या मिट्टी के बर्तन जैसी कठोर सतह पर खुदे होते हैं , उन्हें अभिलेख कहते हैं ।
3. जनपद- ऐसा भूखंड जहाँ जन ( लोग , कुल या जनजाति ) अपना पाँव रखता है अथवा बस जाता है । इस शब्द का प्रयोग संस्कृत एवं प्राकृत दोनों में मिलता है ।
4. असोक - प्राकृत भाषा में अशोक को ' असोक ' लिखा जाता है ।
5. मुद्राशास्त्र - सिक्कों पर पाए जाने वाली लिपि , चित्र आदि और उनकी धातुओं का विश्लेषण और जिन संदर्भों में इन सिक्कों को पाया गया है , उनका अध्ययन मुद्राशास्त्र में शामिल है ।
6. ओलीगार्की- इसे समूहशासन भी कहते हैं । इसमें सत्ता पुरुषों के एक समूह के हाथ में होती है ।
7. राजगाह - राजगीर का प्राचीन प्राकृत नाम राजगाह था । इसका शाब्दिक अर्थ है राजाओं का घर ।
8. कौटिल्य कौटिल्य को चाणक्य तथा विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है ।
9. पेरिप्लस यह यूनानी भाषा का शब्द है । इसका अर्थ समुद्री है ।
10. तमिलकम इसका अभिप्राय उपमहाद्वीप के दक्कन तथा उससे दक्षिण के क्षेत्र
11. वानात्मक अभिलेख - दूसरी शताब्दी के वे छोटे - छोटे अभिलेख है जो विभिन्न नगरों से मिले हैं । इनमें धार्मिक संस्थाओं को दिए गए दान का विवरण है ।
12. अग्रहार- ब्राह्मणों को दान में दिए गए भू - भाग
13. संगम साहित्य- प्राचीन तमिल काव्यों के संग्रह को संगम साहित्य कहते हैं
14. गृहपति- यह घर का मुखिया ( गृहपति ) होता था ।
कालक्रम ( Dateline )
प्रमुख राजनीतिक और आर्थिक विकास
काल | घटना |
लगभग 600-500 ई ० पू ० | धान की रोपाई ; गंगाघाटी में शहरीकरण ; महाजनपद ; आहत सिक्के |
लगभग 500-400 ई ० पू ० | मगध के शासकों की सत्ता पर पकड़ |
लगभग 327-325 ई ० पू ० | सिकंदर का आक्रमण |
लगभग 272 / 268-231 ई ० पू ० | चंद्रगुप्त मौर्य का राज्यारोहण |
लगभग 185 ई ० पू ० | अशोक का शासन |
लगभग 200-100 ई ० पू ० | मौर्य साम्राज्य का अंत |
लगभग 78 ई ० पू ० | पश्चिमोत्तर में शक शासन ; दक्षिण भारत में चोल , चेर और पांड्य दक्कन में सातवाहन का शासन |
लगभग 100-200 ई ० पू ० | कनिष्क का राज्यारोहण |
लगभग 320 ई ० पू ० | सातवाहन तथा शक शासकों द्वारा भूमिदान का अभिलेखीय प्रमाण |
लगभग 335-375 ई ० पू ० | गुप्त शासन का आरंभ |
लगभग 375-415 ई ० पू ० | समुद्रगुप्त का शासन |
लगभग 500-600 ई ० पू ० | चंद्रगुप्त द्वितीय ; दक्कन में वाकाटक |
लगभग 606-647 ई ० पू ० | कर्नाटक में चालुक्यों और तमिलनाडु में पल्लवों का उदय |
लगभग 712 ई ० पू ० | अरबों की सिंध पर विजय |
- 1784 - बंगाल एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना
- 1810 का दशक - कोलिन मैकेंजी ने संस्कृत और तमिल भाषा के 8,000 अभिलेखों को एकत्र किया ।
- 1838 - जेम्स प्रिंसेप द्वारा अशोककालीन ब्राह्मी लिपि का पढ़ा जाना ।
- 1877 - अलेक्ज़ेंडर कनिंघम ने अशोक अभिलेखों के एक अंश को प्रकाशित किया ।
- 1886 - एपीग्राफ़ीआ कर्नाटिका का प्रथम संस्करण
- 1888 - एपिग्राफ़िआ इंडिका का प्रथम अंक
- 1965-66 - डी ० सी ० सरकार ने इंडियन एपिग्राफ़ी और इंडियन एपिग्राफ़िकल ग्लोसरी प्रकाशित की