CLASS 12 HISTORY CHAPTER 3 , बंधुत्व , जाति तथा वर्ग आरंभिक समाज NOTES IN HINDI

 

बंधुत्व , जाति तथा वर्ग आरंभिक समाज ( लगभग 600 ई ० पू ० से 600 ईसवी )


महत्त्वपूर्ण तथ्य ( Facts that Matter ) 

• उपमहाद्वीप के सबसे समृद्ध ग्रंथों में से एक महाभारत है । वर्तमान में इसके स्वरूप का अवलोकन करें तो इसमें एक लाख से भी अधिक श्लोक हैं और ये श्लोक तत्कालीन समाज के विभिन्न वर्गों एवं उनकी परिस्थितियों का वास्तविक चित्र प्रस्तुत करते हैं । 

• महाभारत की मूल कहानी दो परिवारों के बीच युद्ध से संबंधित है । ये परिवार कौरव और पांडव थे । वस्तुतः ये आपस में बांधव यानी चचेरे भाई थे । 

• कौरव और पांडव दोनों कुरु वंश से संबंधित थे और इनका एक ही जनपद पर शासन था । सत्ता के संघर्ष में पांडव विजयी हुए । इसके उपरांत व्यापक स्तर पर पितृवशिक उत्तराधिकार को उद्घोषित किया गया । 

• पितृवंश को बनाए रखने के लिए पुत्र महत्त्वपूर्ण होते थे । इस व्यवस्था में पुत्रियों की अहमियत कम हुई । 

• पिता पुत्रियों को अपने गोत्र से बाहर विवाह करता था । इस प्रथा को बहिर्विवाह पद्धति कहते हैं । साथ ही कन्यादान को पिता का महत्वपूर्ण धार्मिक कर्तव्य माना जाता था । 

• धर्मग्रंथों में आठ प्रकार के विवाह को स्वीकृति दी गई । इनमें से पहले चार उत्तम और शेष को निंदित माना गया । अनुमानतः निदित विवाह पद्धतियों उन लोगों के लिए प्रचलित थीं जो ब्राह्मणीय नियमों को अस्वीकार करते थे । 

• लगभग एक हजार ई ० पू ० के पश्चात् ब्राह्मणों ने मनुष्य जाति को गोत्रों में वगीकृत किया था । हर एक गोत्र का नाम किसी के नाम पर होता था और उस गोत्र के सभी लोग उस ऋषि के वंशज माने जाते थे । 

• सातवाहन राजाओं को अनेक मातॄनाम से जाना जाता है । इससे तो यह प्रतीत होता है कि विचाराधीन काल में माताएँ महत्वपूर्ण थीं । हालाँकि निष्कर्ष पर पहुँचने से पूर्व हमें इस बात की तरफ ध्यान आकृष्ट करना चाहिए कि उस समय सिंहासन का उत्तराधिकार पितृवंशिक होता था । 

• धर्मशास्त्रों और धर्मसूत्रों में चारों वर्गों के लिए एक आदर्श जीविका से संबंधित कुछ नियम मिलते हैं । ब्राह्मणों का कार्य शिक्षा ग्रहण करना एवं शिक्षा देना , यज्ञ करना - कारवाना , वेद पढ़ना , दान देना एवं दान लेना था । क्षत्रियों का काम युद्ध करना , सुरक्षा प्रदान करना न्याय करना , वेद पढ़ना तथा दान - दक्षिणा देना था । वैवों का काम वेद पढ़ना , यज्ञ करवाना , दान - दक्षिणा देना , कृषि करना , गौ - पालन करना और व्यापार करना था । शुद्रों के लिए मात्र तीनों उच्च वर्णों की सेवा करने का काम ही आवंटित था । 

• पुरुषसूक्त के अनुसार वर्ण - व्यवस्था के चारों वर्णों का अभ्युदय ' पुरुष ' बलि से हुआ था । उसके मुँह से ब्राह्मण बना , भुजा से क्षत्रिय , कंधा से वैश्य तथा उसके पैरों से शुद्र की उत्पत्ति हुई । 

• धर्मशास्त्रों के अनुसार मात्र क्षत्रिय राजा हो सकते थे । हालाँकि अनेक राजवंशों की उत्पत्ति अन्य वर्ण से हुई है । उदाहरणस्वरूप मौर्य , शक और सातवाह का नाम लिया जा सकता है । 

• शास्त्रों में प्रयुक्त शब्द जाति के आधार पर भी समाज का वर्गीकरण किया गया है । वर्ण की तरह जाति भी जन्म पर आधारित थी । 

• एक ही प्रकार के व्यवसाय अथवा जीविका से संबंधित जातियों को श्रेणियों में संगठित किया जाता है । हालाँकि श्रेणी की सदस्यता शिल्प में विशेषज्ञता पर निर्भर थी । कुछ लोगों को ब्राहमण वर्ण व्यवस्था वाली सामाजिक प्रणाली के बाहर मानते । साथ - साथ उन्होंने समाज के कुछ विशेष वर्ग को ' अस्पृश्य ' घोषित किया । उनके अनुसार कुछ खास किस्म के अनुष्ठानों को संपादन कराने वालों को इनके हाथ से भोजन नहीं करना चाहिए ।

  • मनुस्मृति के अनुसार पैतृक जायदाद का माता पिता के मरणोपरांत सभी पुत्रों में समान रूप से बँटवारा किया जाना चाहिए । हालाँकि ज्येष्ठ पुत्र विशेष भाग का अधिकारी था । पुत्रियाँ या स्त्रियाँ पैतृक संसाधन में हिस्सेदारी की माँग नहीं कर सकती थीं । 
  • बौद्धों ने जन्म के आधार पर सामाजिक प्रतिष्ठा को अस्वीकार किया । . 

• 1951-52 में पुरातत्ववेत्ता बी ० बी ० लाल ने मेरठ जिले ( उ ० प्र ० ) के हस्तिनापुर नामक एक गाँव में उत्खनन किया । वैसे इस पर विवाद है कि यह महाभारत काल का हस्तिनापुर है या दूसरा 

• इतिहासकार किसी भी ग्रंथ की समालोचना एवं विश्लेषण करते समय कई पहलुओं पर विचार करते हैं ; जैसे रचनाकाल , भाषा , विषयवस्तु आदि । . 

  • इतिहासकार महाभारत के संपूर्ण विषय वस्तु को दो शीर्षकों के अंतर्गत रेखांकित करते हैं 

1. अख्यान भाग- इसमें कहानियों का संग्रह है । 

2. उपदेशात्मक भाग - सामाजिक आचार - विचार के मापदंडों का उल्लेख 

.महत्त्वपूर्ण शब्द ( Words that Matter ) 

1. पितृवंशिकता- वह वंश परंपरा जो पिता के बाद पुत्र फिर पौत्र , प्रपौत्र आदि से चलती है । 

2. मातृवंशिकता - वह वंश परंपरा जो मातृपक्ष के अनुसार चलती है । 

3. कुल- परिवार । 

4. जाति - बांधवों का एक बड़ा समूह । 

5. अंतर्विवाह- यह विवाह एक समूह , एक गोत्र , कुल अथवा एक जाति या फिर एक ही स्थान पर बसlने वालों के मध्य होता है । 

6. बहिविवाह - गोत्र से बाहर होने वाला विवाह ।

 7. बहुपत्नी प्रथा- एक पुरुष की अनेक पत्नियाँ होने की सामाजिक परिपाटी । 

8. बहुपति प्रथा- एक स्त्री के अनेक पति होने की परिवाटी । 

9. गोत्र - एक ही प्राकृत शब्द है , जिसका अर्थ है - पुत्र । 

10 राक्षस - इतिहासकारों के अनुसार राक्षस उन लोगों को कहा जाता था जिनके आचार - विचार ब्राह्मणों द्वारा निर्धारित मापदंडों से भिन्न थे ।