विचारक , विश्वास और इमारतें सांस्कृतिक विकास ( ईसा पूर्व 600 से ईसा संवत् 600 तक )
महत्त्वपूर्ण तथ्य ( Facts that Matter )
• 600 ई ० पू ० से संवत् 600 तक के सांस्कृतिक विकास को समझने के प्रमुख स्रोत बौद्ध , जैन और ब्राह्मण ग्रंथों के अतिरिक्त इमारतें , अभिलेख आदि प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं ।
• इस युग की बची हुई इमारतों में सबसे सुरक्षित और प्रभावी इमारतें मध्य प्रदेश में स्थित साँची और कनखेड़ा की हैं ।
• फ्रांसीसियों और अंग्रेजों की साँची स्तूप के तोरणद्वारों में विशेष अभिरुचि थी । वे स्तूप के पूर्वी तोरणद्वार को , जो सबसे अच्छी स्थिति में था , अपने - अपने यहाँ संग्रहालय में प्रदर्शित करने हेतु ले जाना चाहते थे । किंतु बाद में प्लॉस्टर से बनाई गई प्रतिकृतियों से संतुष्ट हो गए ।
• भोपाल के शासकों शाहजहाँ बेगम और उनकी उत्तराधिकारिणी सुल्तानजहाँ बेगम ने साँची स्तूप के संरक्षण में अहम् योगदान दिया । इन्होंने इसके रखरखाव हेतु विशाल धनराशि अनुदान के रूप में दी ।
• साँची स्तूप की खोज से आरंभिक बौद्ध धर्म के बारे में हमारी समझ में क्रांतिकारी बदलाव आए । आज भी यह स्थान भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के सफल संरक्षण का जीता - जागता उदाहरण है ।
• ईसा पूर्व प्रथम सहस्राब्दि का काल विश्व इतिहास के लिए इसलिए महत्त्वपूर्ण माना जाता है कि इसी समय ईरान में जरथुस्त्र , चीन में खुंगत्सी , युनान में सुकरात , प्लेटो , अरस्तु तथा भारत में महावीर . बुद्ध जैसे विचारकों का जन्म हुआ जिन्होंने जीवन के रहस्यों को समझने और समझाने का प्रयास किया ।
• पूर्व वैदिक परंपरा की जानकारी हमें ऋग्वेद से मिलती है । इसमें अग्नि , इंद्र , सोम आदि कई देवताओं की स्तुति का संग्रह है ।
• यज्ञ अपने पूर्वाद्ध के आरंभिक चरण में सामूहिक रूप से ही किए जाते थे . किंतु आगे चलकर घर के मालिकों सरदारों और राजाओं ने भी ब्राह्मण पुरोहितों के माध्यम से यज्ञ संपन्न कराने लगे । विशेष रूप से राजसूय या अश्वमेध यज्ञ राजा या सरदार ही किया करते थे
• उपनिषदों में वर्णित विवरणों से ज्ञात होता है कि लोग जीवन का अर्थ मरणोपरांत पुनः जीवन की संभावना के बारे में उत्सुक थे ।
• समकालीन बौद्ध धर्म ग्रंथों में हमें 64 चिंतन परंपराओं या संप्रदायों का उल्लेख मिलता है । प्रत्येक परंपरा के शिक्षक अपने दर्शन या विश्व के विषय में अपनी समझ को लेकर लोगों से या अपने प्रतिद्वंद्वी शिक्षक से तर्क करते थे । इनमें महावीर और बुद्ध का नाम सर्वोपरि हैं , जोकि वेदों के प्रभुत्व पर प्रश्न उठाते थे ।
• बुद्ध की शिक्षाओं को उनके मरणोपरांत ' त्रिपिटक ' में संग्रह किया गया ।
• छठी ई ० पू ० या महावीर के जन्म से पहले ही जैनों के मूल सिद्धांत उत्तर भारत में प्रचलित थे । जैन परंपरानुसार महावीर से पूर्व 23 तीर्थकर हो चुके थे ।
• जैन धर्म की सबसे महत्त्वपूर्ण अवधारणा यह थी कि ब्रह्मांड का कण - कण प्राणवान है । अतः अहिंसा जैन दर्शन का केंद्रबिंदु है ।
• बौद्ध विद्वानों की तरह जैन विद्वानों ने भी संस्कृत , प्राकृत तथा तमिल जैसी कई भाषाओं में साहित्य सृजन किया ।
• बुद्ध अपने युग के सबसे प्रभावशाली शिक्षकों में से एक थे । सैकड़ों वर्षों के दौरान उनके संदेश पूरे उपमहाद्वीप में और तत्पश्चात मध्य एशिया होते हुए चीन , कोरिया , जापान , श्रीलंका , म्याँमार , थाइलैंड तथा इंडोनिशिया तक पहुँचे ।
• बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था । ये शाक्य कबीले के एक महत्त्वपूर्ण सदस्य के पुत्र थे ।
• बौद्ध दर्शन के अनुसार विश्व अनित्य और परिवर्तनशील है , यह आत्माविहीन है । यहाँ कुछ भी शाश्वत या स्थायी नहीं है और दुख मनुष्य के जीवन का अंतर्निहित तत्व है । मध्यम मार्ग अपनाकर मनुष्य दुनिया के दुखों से मुक्ति पा सकता है ।
• बुद्ध ने आत्म - ज्ञान , जीवन - मरण के चक्र से मुक्ति और निर्माण हेतु व्यक्ति केंद्रित हस्तक्षेप एवं सम्यक कर्म की कल्पना की ।
• बौद्ध परंपरानुसार शिष्यों के लिए महात्मा बुद्ध का अंतिम संदेश था , " तुम सब अपने लिए खुद ही ज्योति बनो क्योंकि तुम्हें खुद ही अपनी मुक्ति का रास्ता ढूँढ़ना है । "
• धीरे - धीरे बुद्ध के शिष्यों की संख्या पर्याप्त हो गई । फलस्वरूप उन्होंने संघ की स्थापना की । यह ऐसे भिक्षुओं की संस्था थी , जो धम्म के शिक्षक बन गए थे । उनके पास जीवनयापन के लिए अतिआवश्यक वस्तुओं को छोड़कर कुछ भी नहीं होता था ।
• शुरू - शुरू में मात्र पुरुष ही संघ में सम्मिलित हो सकते थे । कालांतर में महिलाओं को भी अनुमति मिल गई । बौद्ध धर्म ग्रंथों के अनुसार बुद्ध के सर्वप्रिय शिष्य आनंद ने बुद्ध को समझाकर महिलाओं को संघ में आने की अनुमति प्राप्त की । बुद्ध की उपमाता महाप्रजापति गोतमी संघ में शामिल होने वाली पहली महिला थीं ।
• अलग - अलग सामाजिक वर्ग के लोग बुद्ध के अनुयायी बने । फिर भी अनुयायियों में समानता का वातावरण बना रहता था । क्योंकि भिक्खु या भिक्खुनी बनने के पश्चात उन्हें अपनी पुरानी पहचान को त्याग देना पड़ता था ।
• बौद्ध धर्म में जन्म के आधार पर श्रेष्ठता के बजाय जिस तरह से अच्छे आचरण और मूल्यों को महत्त्व दिया गया उससे आम जनमानस का रुझान इसकी तरफ बढ़ा ।
• बौद्ध साहित्य में बहुत सारे चैत्यों का जिक्र है । साथ ही बुद्ध के जीवन से संबंधित स्थानों का भी वर्णन है । उदाहरणस्वरूप उनका जन्मस्थान ( लुम्बिनी ) , ज्ञान प्राप्ति का स्थान ( बोधगया ) , प्रथम उपदेश देने का स्थान ( सारनाथ ) तथा निर्वाण प्राप्ति का स्थान ( कुशीनगर ) आदि ।
• साँचो एवं भरहुत के आरंभिक स्तूपों में की वेदिकाएँ और तोरणद्वार हैं । पत्थर की ये वेदिकाएँ किसी बाँस या काठ के घेरे के समान तथा बिना अलंकरण के हैं । परंतु चारों दिशाओं में खड़े तोरणद्वारों पर खूब नक्काशी की गई है ।
• सन् 1796 ई ० में एक स्थानीय राजा मंदिर बनाना चाहता था । अचानक अमरावती के स्तूप के अवशेष मिले ।
• सन् 1854 में गुटर ( आंध्र प्रदेश ) के कमिश्नर ने अमरावती की यात्रा की । उन्होंने कई मूर्तियाँ और उत्कीर्ण पत्थर एकत्र किए और वे उन्हें मद्रास ले गए । उन्होंने पश्चिमी तोरणद्वार भी खोज लिया । अंततः वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि अमरावती का स्तूप बौद्धों का सर्वाधिक विशाल और भव्य स्तूप है ।
• पुरातत्त्ववेत्ता एस ० एच ० कोल उन विरले लोगों में से थे जो तत्कालीन पुरातत्ववेत्ताओं से भिन्न सोच रखते थे । उनका मानना था कि संग्रहालयों में मूर्तियों की प्लास्टर प्रतिकृतियाँ रखी जानी चाहिए और असली कृतियों को खोज स्थल पर सुरक्षित रखना चाहिए । विद्वानों ने अमरावती के मामले में उनकी बात को नहीं समझा । परिणामस्वरूप अमरावती का महाचैत्य अब सिर्फ़ एक छोटा - सा टोला के रूप में बचा है ।
• बौद्धकालीन मूर्तिकला को समझने हेतु इतिहासकारों को बुद्ध के चरित्र लेखक के बारे में समझ बनानी पड़ी । प्रारंभिक मूर्तिकारों ने बुद्ध की मानव रूप में न दिखाकर प्रतीकों के माध्यम से दर्शाने का प्रयास किया ।
• शालभंजिका की मूर्ति से यह ज्ञात होता है कि जो लोग बौद्ध धर्म में आए उन्होंने बुद्ध - पूर्व और बौद्ध धर्म से इतर दूसरे विश्वासों प्रथाओं और सिद्धांतों से बौद्ध धर्म को समृद्ध किया । और
• अजंता के भित्ती चित्र जातक कथाओं को दर्शाते हैं । इनमें राजदरबार की जीवन शैली , शोभा यात्राएँ . कामकाजी स्त्री - पुरुष त्योहारों के दृश्य शामिल हैं । बौद्ध धर्म ग्रंथों से ज्ञात होता है कि मौर्य सम्राट अशोक ने महात्मा बुद्ध के अवशेषों को महत्त्वपूर्ण शहरों में बाँटकर उन पर स्तूप बनाने का आदेश दिया था । यह भी पता चलता है कि भरहुत , साँची और सारनाथ जैसे स्थानों महत्त्वपूर्ण स्तूप बनवाए जा चुके थे ।
• साँची स्तूप जानवरों के कुछ बहुत ही सुंदर उत्कीर्णन पाए गए हैं । इनमें हाथी , घोड़े , बंदर एवं गाय - बैल सम्मिलित हैं । ऐसा अनुमान है कि इस प्रकार का उत्कीर्णन लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने हेतु किया गया था ।
• इतिहासकारों का मानना है कि इन जानवरों का उत्कीर्णन मनुष्य के गुणों के प्रतीकस्वरूप इस्तेमाल किया जाता था । उदाहरणतः हाथी शक्ति और ज्ञान के प्रतीक माने जाते थे ।
• ईसा की प्रथम सदी के पश्चात बौद्ध अवधारणाओं और व्यवहार में परिवर्तन देखने को मिलता है । प्रारंभिक बौद्ध मत में निब्बान हेतु व्यक्तिगत प्रयास को विशेष महत्त्व दिया गया था और बुद्ध को भी एक मनुष्य समझा जाता था । किंतु धीरे - धीरे मुक्तिदाता की कल्पना उभरने लगी और बुद्ध मुक्ति दिलवा सकते हैं , ऐसा विश्वास बढ़ने लगा ।
• बौद्ध धर्म की नयी चिंतन परंपरा को महायान के नाम से जाना गया । महायान के अनुयायी दूसरी बौद्ध परंपराओं के समर्थकों को हीनयान के अनुयायी कहते थे किंतु पुरातन परंपरा के अनुयायी स्वयं को थेरवादी कहते थे ।
• हिंदू धर्म में भी दो परंपराएँ थीं वैष्णव तथा शैव । वैष्णव धर्म में विष्णु को सबसे महत्त्वपूर्ण देवता माना जाता है तो शैव धर्म में शिव का महत्त्वपूर्ण देवता माना जाता है ।
• वैष्णव धर्म में कई अवतारों के इर्द - गिर्द पूजा पद्धतियाँ विकसित हुईं । इस संकल्पना में दस अवतारों की कल्पना है । ऐसा माना जाता है कि जब धरती पर पाप अत्यधिक बढ़ जाता है तब दुनिया में अव्यवस्था एवं नाश की स्थिति आ जाती है । ऐसे में भगवान विष्णु अलग - अलग रूपों में अवतार लेकर पापियों का नाश करते हैं ।
• मंदिरों का आरंभिक स्वरूप दरवाजा लगा एक चौकोर कमरे की तरह होता था । जिसमें मूर्ति रखी होती थी । इसे ही गर्भगृह कहा जाता था । धीरे - धीरे गर्भगृह के ऊपर ऊँचा ढाँचा बनाया जाने लगा , जिसे शिखर कहा जाता था । मंदिरों पर प्रायः भित्तिचित्र उत्कीर्ण किए जाते थे ।
• आरंभिक मंदिरों की एक विशेषता यह भी थी कि कुछ मंदिर पहाड़ियों को काटकर खोखल करके कृत्रिम गुफाओं के रूप में बनाए गए थे । सबसे प्राचीन कृत्रिम गुफाएँ ईसा पूर्व तीसरी सदी में अशोक के आदेशानुसार आजीविक संप्रदाय के संतों के लिए बनाई गई थीं ।
● पहाड़ियों को काटकर बनाए गए मंदिरों में सर्वाधिक विकसित रूप हमें आठवीं सदी के कैलाशनाथ के मंदिर में नज़र आता है ।
• प्राचीन भारतीय मूर्तियों को समझने के लिए समकालीन यूनानी मूर्तियों से उनकी तुलना करने की अपेक्षा लिखित ग्रंथों से जानकारी एकत्रित करना एक बेहतर तरीका है ।
महत्त्वपूर्ण शब्द ( Words that Matter )
1. निर्वाण- अहं और इच्छा की समाप्ति ।
2. चैत्य - बौद्धों का मंदिर ।
3. स्तूप - बौद्ध धर्म से जुड़े पवित्र टीले , जिसमें बुद्ध के शरीर के कुछ अवशेष या उनके द्वारा प्रयोग की गई किसी वस्तु को गाड़ा गया था ।
4. गर्भगृह - एक प्रकार का चौकोर कमरा । इसमें देवता की मूर्ति रखी जाती थी ।
5. शिखर - गर्भगृह के ऊपर बना एक ऊँचा ढाँचा ।
6. थेरवादी - वे लोग जो पुराने प्रतिष्ठित शिक्षकों ( जिन्हें ' धेर ' कहा जाता था ) के बताए रास्ते का अनुसरण करते थे ।
7. बोधिसत्त- अच्छे कार्यों से पुण्य कमाने वाले लोग ।
8. कुटागारशाला - नुकीली छत वाली झोंपड़ी ।
9. भिक्खु - दान पर निर्भर रहने वाले लोग ।
10. निव्यान- निर्वाण ।