महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन सविनय अवज्ञा और उससे आगे

 

महत्त्वपूर्ण तथ्य ( Facts that Matter )
  • राष्ट्रवाद के इतिहास में प्रायः एक अकेले व्यक्ति को राष्ट्र निर्माण के साथ जोड़कर देखने की परंपरा रही है । जिस प्रकार से इटली के निर्माण के साथ गैरीबाल्डों को , वियतनाम को औपनिवेशिक शासन से मुक्त कराने के संघर्ष के साथ हो ची मिन्ह को तथा अमेरिकी स्वाधीनता संग्राम के साथ जार्ज वाशिंगटन को जोड़कर देखा जाता है , उसी प्रकार महात्मा गाँधी को भारतीय राष्ट्रवाद का जनक माना जाता है ।
  • नि : संदेह महात्मा गाँधी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में प्रभावशाली और सम्मानित हैं ; अतः अपनी अहम् भूमिका अदा करने वाले समस्त नेताओं में सबसे उन्हें ' राष्ट्रपिता ' से संबोधित करना सर्वथा उचित है ।
  • महात्मा गाँधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी था , इनका जन्म 2 अक्टूबर , 1869 को काठियावाड़ ( गुजरात के पोरबंदर नामक नगर एक पारंपरिक हिंदू परिवार में हुआ था । वह विदेश में दो दशक रहने के पश्चात जनवरी 1915 में अपनी जन्मभूमि भारत वापिस आए । वे दक्षिण अफ्रिका में वकील बनकर गए थे और बाद में वे इस क्षेत्र के भारतीय समुदाय के नेता बन गए ।
  • इतिहासकार चंद्रन देवनेसर के अनुसार दक्षिण अफ्रिका ने ही महात्मा गाँधी को ' महात्मा ' बनाया । महात्मा गाँधी ने पहली बार दक्षिण अफ्रिका में ही अहिंसात्मक विरोध की अपनी विशिष्ट शैली ' सत्याग्रह ' का प्रयोग किया ।
  • जब महात्मा गाँधी भारत आए तो उस समय का भारत 1893 में जब वे यहाँ से गए थे तब के समय से काफी बदल चुका था । हालांकि अब भारत उपनिवेश ही था किंतु राजनीतिक दृष्टि से काफी संवेदनशील और सक्रिय हो चुका था अधिकतर शहरों और कस्बों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की शाखाएँ स्थापित हो चुकी थीं ।
  • 1905-07 के स्वदेशी आंदोलन ने मध्यम वर्ग में अपनी जड़ें जमाने में सफल रहा । साथ - साथ कुछ प्रमुख प्रभावशाली नेताओं के उद्भव का कारण बना । इनमें महाराष्ट्र के बाल ( बाल गंगाधर तिलक ) बंगाल के पाल ( विपिन चंद्र पाल ) और पंजाब के लाल लाला लाजपतराय ) प्रमुख थे ।
  • जहाँ लाल - बाल - पाल ने औपनिवेशिक शासन के प्रति लड़ाकू विरोध का समर्थन किया वहीं ' उदारवादियों का एक समूह था जो क्रमिक व लगातार प्रयास करते रहने का हिमायती था ।
  • उदारवादियों में गाँधी जी के राजनीतिक परामर्शदाता गोपाल कृष्ण गोखले के साथ - साथ मोहम्मद अली जिन्ना भी शामिल थे ।
  • ब्रिटिश भारत में गाँधी जी की पहली महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक उपस्थित फरवरी 1916 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के उद्घाटन समारोह में हुई ।
  • बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के उद्घाटन समारोह में जब गाँधी जी को बोलने का अवसर मिला तो उन्होंने कहा कि इस विश्वविद्यालय की स्थापना निश्चय ही एक शानदार बात है । साथ ही उन्होंने समारोह में उपस्थित सजे - सँवेरे भद्रजनों की उपस्थित किंतु लाखों गरीब भारतीयों की अनुपस्थिति पर अपनी चिंता जताई ।
  • गाँधी जी का फरवरी 1916 ई ० का बनारस भाषण इस तथ्य का परिचायक था कि तत्कालीन दृष्टि से भारतीय राष्ट्रवाद - वकीलों , डॉक्टरों एवं जमींदारों जैसे कुछ विशेष वर्गों द्वारा निर्मित था । लेकिन दूसरी दृष्टि से देखा जाए तो यह वक्तव्य गाँधी जी की उस मंशा का भी प्रतिनिधित्व करता है जिसके तहत वे चाहते थे कि भारतीय राष्ट्रवाद भारत के जन - जन के हृदय में जागृत हो ।
  • गाँधी जी ने 1916 ई ० में अहमदाबाद में साबरमती के किनारे पर साबरमती आश्रम की स्थापना की । इसे ‘ सत्याग्रह आश्रम का नाम दिया गया ।
  • 1917 का अधिकतर समय महात्मा गाँधी को काश्तकारी की सुरक्षा के साथ - साथ उनको अपनी मनपसंद की फसल उपजाने की आजादी दिलाने में बीता ।
  • 1918 में गाँधी जी अपने गृहराज्य गुजरात में दो महत्त्वपूर्ण अभियानों में व्यस्त रहे । इस वर्ष फरवरी में उन्होंने अहमदाबाद के कपड़ा मिल - मजदूरों का समर्थन करते हुए उनके काम की बेहतर स्थिति की माँग की । गाँधी जी की मध्यस्थता की वजह से मजदूरों की हड़ताल समाप्त हो गई और मिल मालिक मजदूरी को 35 % बोनस देने का तैयार हो गए । मार्च में उन्होंने फ़सल नष्ट हो जाने पर खेड़ा राज्य के किसानों का लगान माफ़ कराने की माँग की ।
  • 1914-18 के महान युद्ध की अवधि ने अंग्रेजों ने प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया था और बिना जाँच केस की अनुमति दे दी गई थी । इस महत्वपूर्ण युद्ध के समाप्ति के साथ ही कानून की अवधि भी समाप्त होने वाली थी । किंतु ऑस्टिस सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता में नियुक्त संस्तुतियों के आधार पर इनको जारी रखा गया ।
  • गांधी जी ने फरवरी 1919 ई ० में एक सत्याग्रह सभा की स्थापना की । तत्पश्चात उन्होंने ' रलिट एक्ट के विरुद्ध आंदोलन आरंभ करने का निश्चय कर लिया । 30 मार्च 1919 को दिल्ली में व्यापक हड़ताल हुई और 6 अप्रैल 1919 को देश के लगभग सभी अहम् नगरों में हड़ताल प्रदर्शन किया गया । परिणामस्वरूप संपूर्ण देश में राजनैतिक जागरण की अभूतपूर्व सुनामी आई ।
  •  रॉलेट एक्ट ' का सर्वाधिक विरोध पंजाब में देखने को मिला , जहाँ की अधिकांश जनता ने युद्ध के दौरान अंग्रेजों का प्रत्येक दृष्टिकोण से समर्थन इसलिए किया था कि युद्धोपरांत उन्हें ब्रिटिश सरकार इनाम देगी । लेकिन इनाम के स्थान पर उन्हें रॉलेट एक्ट दिया गया । उसी दौरान पंजाब जाते समय गाँधी जी सहित स्थानीय कांग्रेसियों को गिरफ्तार कर लिया गया । तुरंत बाद 1919 के जलियाँवाला बाग हत्याकांड ने लोगों के रोष को चरम पर पहुंचा दिया ।
  • रॉलेट एक्ट ' के विरुद्ध संघर्ष करने की वजह से ही गाँधी जी एक सच्चे राष्ट्रीय नेता बन गए । इसकी कामयाबी से उत्साहित होकर गाँधी जी ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध असहयोग आदोलन आरंभ कर दिया । आम जनता ने गाँधी का साथ देते हुए खिलाफत आंदोलन को असहयोग आंदोलन का अंग बना दिया ।
  •  खिलाफत आंदोलन वस्तुतः तुर्की शासक काल अतातुर्क द्वारा समाप्त किए गए सर्व - इस्लामवाद के प्रतीक खलीफा की पुनर्स्थापना की मांग कर रहा था ।
  •  खिलाफत आंदोलन और असहयोग आंदोलन दोनों के मिलने से गाँधी जी को आशा थी कि भारत के दो प्रमुख धार्मिक समुदाय – हिंदू और मुसलमान मिलकर औपनिवेशिक शासन को समाप्त कर देंगे ।
  • भारतीय विद्यार्थियों ने सरकारी विद्यालयों और कॉलेजों में जाना छोड़ दिया । वकीलों ने भी अदालतों में जाने से इनकार कर दिया । कई प्रमुख नगरों में श्रमिक वर्ग हड़ताल पर चला गया । सरकारी आँकड़े के अनुसार 1921 में 396 हड़ताल हुई , जिनमें 6 लाख श्रमिक सम्मिलित थे । इसकी वजह से 70 लाख कार्यदिवसों का नुकसान हुआ ।
  • 1857 के विद्रोह के पश्चात पहली बार असहयोग आंदोलन से ही ब्रिटिश सरकम की नींद उड़ी । • फरवरी 1922 के चौरी - चौरा कांड के प्रतिक्रिया स्वरूप गाँधी जी को असहयोग आंदोलन तत्काल वापस लेना पड़ा ।
  •  1922 तक गाँधी जी ने भारतीय राष्ट्रवाद को हर एक भारतीय के हृदय में जागृत कर दिया । अब राष्ट्रीय आंदोलन मात्र व्यवसाइयाँ तथा बुद्धिजीवियों का ही आंदोलन नहीं रह गया । अब इसमें हज़ारों की संख्या में श्रमिक , किसान तथा कामगारों ने भाग लेना शुरू कर दिया । .
  • गाँधी जी में राष्ट्रीयता की भावना अभूतपूर्व थी । यह उनके वस्त्रों के रूप में परिलक्षित होती थी । जहाँ अन्य राष्ट्रवादी नेता पश्चिमी शैली के सूट या भारतीय बंद गला जैसे औपचारिक वस्त्र पहनते थे वहीं गाँधी जी लोगों के बीच साधारण धोती में जाते थे । महात्मा गाँधी का जन अनुरोध निष्कपट था । राष्ट्रवाद के आधार को और व्यापक आयाम देने में महात्मा गाँधी द्वारा सावधानीपूर्वक किया गया संगठन था । उनकी अगुवायी में भारत के भिन्न - भिन्न भागों में कांग्रेस की नयी - नयी शाखाएँ खोली गई । राजवाड़ों में राष्ट्रवादी भावना को प्रबल बनाने के लिए ' प्रजा मंडलों ' की स्थापना की गई ।
  • गाँधी जी जितने राजनीतिक थे उतने ही समाज सुधारक भी थे । उनका विश्वास था कि भारतीयों को स्वतंत्रता योग्य बनने हेतु उन्हें बाल - विवाह , और छुआ - छूत जैसी सामाजिक बुराइयों से मुक्त होना पड़ेगा ।
  • असहयोग आंदोलन समाप्त होने के कई वर्ष तक महात्मा गांधी ने अपने आपको समाज सुधार संबंधी कार्यों तक ही सीमित रखा । 1928 में उन्होंने पुन : राजनीति में प्रवेश करने की सोची और साइमन कमीशन के विरोध में चल रहे देश भर में उनदोलन को इन्होंने आशीर्वाद दिया । ऐसा ही इन्होंने बारदोली में होने वाले एक किसान सत्याग्रह के साथ किया ।
  • कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन दिसंबर , 1929 में लाहौर में हुआ । यह अधिवेशन निम्नलिखित दो दृष्टियों से अहम् - 
  1. कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में जवाहरलाल नेहरू का चुनाव जो युवा पीढ़ी के नेतृत्व का प्रतीक था । 
  2. पूर्ण स्वराज्य या पूर्ण स्वतंत्रता की उद्घोषणा
  • 26 फरवरी 1930 को देश में सर्वप्रथम अलग - अलग स्थानों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराकर और देशभक्ति के गीत देश भर में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया ।
  •  पहल्ला स्वतंत्रता दिवस मनाए जाने के तुरंत बाद महात्मा गाँधी ने घोषणा की कि ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाया गया नमक कानून सर्वाधिक घृणित कानून में से एक है ।
  • नामक कानून को भंग करने के लिए गाँधी जी ने 12 मार्च , 1930 को अपने साबरमती आश्रम से समुद्र की ओर चलना आरंभ किया । तीन सप्ताह बाद दाड़ी पहुंचकर उन्होंने मुट्ठी भर नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा । यह सविनय अव आंदोलन की शुरुआत थी ।
  • दांडी यात्रा मुख्य रूप से तीन कारणों से उल्लेखनीय थी 1. इसके चलते महात्मा गाँधी पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो गए । 2. यह भारतीय इतिहास की पहली ऐसी घटना थी जिसमें महिलाओं ने भी बढ़ - चढ़कर भाग लिया । 3. इस यात्रा के बाद अंग्रेजों को पहली बार महसूस हुआ कि अब उनकी सत्ता बहुत दिनों तक कायम नहीं रहेगी ।
  • इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर ब्रिटिश सरकार ने लंदन में 1930 ई ० में प्रथम गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया । हालांकि इसमें देश के प्रमुख नेताओं ने भाग नहीं लिया । फलस्वरूप यह बैठक असफल रही ।
  • दूसरा गोलमेज सम्मेलन 1931 के आखिर में पुनः लंदन में आयोजित हुआ । इसमें कांग्रेस का नेतृत्व गाँधी जी कर रहे थे । इनका कहना था कि उनकी पार्टी संपूर्ण भारतीय जनमानस का प्रतिनिधित्व करती है । हालाँकि गाँधी जी के दावे को तीन तरफ से खारिज किया गया 1. मुस्लिम लीग की तरफ से । 2. राजे - रजवाड़ों के तरफ से । 3. डॉ ० भीमराव अंबेडकर की तरफ से ।
  •  दूसरे गोलमेज सम्मेलन का भी कोई परिणाम नहीं निकला । अतः लंदन से आने के बाद गाँधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन फिर से प्रारंभ कर दिया ।
  • गाँधी जी ने अपनी बहन को लिखे एक निजी खत में ' निम्न जातियों ' के लिए पृथक निर्वाचिका की आलोचना की है । उनका मानना था कि ऐसा करने पर समाज की मुख्यधारा में उनका एकीकरण नहीं हो पाएगा ।
  • सन् 1935 में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट पारित हुआ । इसमें सीमित प्रतिनिधिक शासन व्यवस्था का आश्वासन व्यक्त किया गया । इसके दो साल बाद सीमित मताधिकार पर हुए चुनाव में कांग्रेस को जबर्दस्त सफलता मिली । कुल 11 प्रांतो में से 8 प्रांतों में कांग्रेस के ' प्रधानमंत्री ' सत्ता में आए जो ब्रिटिश गवर्नर की देख - रेख में काम करते थे ।
  • सितंबर 1939 में दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत में ही महात्मा गाँधी और जवाहरलाल नेहरू चूँकि ये हिटलर व नात्सियों के कट्टर आलोचक थे , ने फैसला लिया कि अगर अंग्रेज युद्ध समाप्त होने के पश्चात भारत को स्वतंत्रता देने पर राजी हों तो कांग्रेस युद्ध में उनकी सहायता करेगी । हालाँकि ब्रिटिश सरकार ने उनका प्रस्ताव खारिज कर दिया जिसके विरोध स्वरूप कांग्रेसी मंत्रीमंडल ने अक्टूबर 1939 में इस्तीफ़ा दे दिया ।
  • मुस्लिम लीग मार्च 1940 में उपमहाद्वीप के मुस्लिम बहुल इलाकों के लिए कुछ स्वायत्ता की माँग का प्रस्ताव पेश किया । इससे राजनीतिक जटिलता काफी बढ़ गई ।
  •  इस समय ब्रिटेन में सर्वदलीय सरकार सत्ता में थी , जिसमें सम्मिलित लेबर पार्टी के सदस्य भारतीय अभिलाषाओं के प्रति हमदर्दी का व्यवहार रखते थे । हालाँकि सरकार के सर्वोच्च पद पर आसीन प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल कट्टर साम्राज्यवादी थे ।
  • 1942 में क्रिप्स मिशन भारत पहुंचा । क्रिप्स से वार्ता के दौरान कांग्रेस ने इस बात पर बल दिया कि यदि ब्रिटिश शासन शक्तियों से भारत की रक्षा के लिए समर्थन की है तो उस अपनी परिषद् में किसी भारतीय को रक्षा सदस्य नियुक्त करना होगा । इसी बात को लेकर वार्ता टूट गई ।
  • क्रिप्स वार्ता टूटने के पश्चात महात्मा गाँधी के अनुसार अगस्त 1942 में एक आंदोलन की शुरुआत हुई , जिसको ' भारत आंदोलन के नाम से जाना जाता है ।
  • ' भारत छोड़ो आंदोलन ' भारतीय इतिहास का सही मायने में एक जनआदान था , जिसमें लाखों आम हदुस्तानी शामिल । इस आंदोलन ने भारी संख्या में युवा वर्ग को अपनी तरफ आकर्षित किया ।
  •  जून 1941 में गांधी जी ने कांग्रेस और मुस्लिम लीग की दुनियाँ मिटाने के लिए जिला के साथ कई बार समझता वार्ता की । 1945 में लेबर पार्टी की सरकार बनी यह सरकार भारत की स्वतंत्रता की हिमायती थी । अतः बायसराय लार्ड वाल और मुस्लिम लीग में समझौता कराने के उद्देश्य कई बार बैठक का आयोजन किया ।
  • 1946 ई ० के प्रारंभ में प्रांतीय विधान मंडलों के लिए नए तरीके से चुनाव कराए गए । समान्य सीटों पर कांग्रेस को भारो सफलता मिली वहीं मुसलमानों के लिए आरक्षित सौटो पर मुस्लिम लीग को जबर्दस्त बहुमत हासिल हुआ । हम कह सकते हैं कि राजनीतिक ध्रुवीकरण पूरा हो चुका था ।
  • 1946 ई ० में कैबिनेट मिशन भारत आया । इसन कांग्रेस और मुस्लिम लोग को एक ऐसी संघीय व्यवस्था पर राजी करने की कोशिश की , जिसके तहत भारत के सभी भीतरी प्रांतों को सीमित स्वायत्तता दी जा सकती थी , किंतु कैबिनेट मिशन का यह प्रयास भी विफल रहा ।
  • कैबिनेट मिशन की विफलता के पश्चात जिन्ना ने पाकिस्तान की स्थापना के लिए लीग की माँग के समर्थन में प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस ' का आह्वान किया । इसके लिए 16 अगस्त , 1946 का दिन निश्चित हुआ । हालांकि उसी दिन हिंदू - मुस्लिम खूनी संघर्ष शुरू हो गया ।
  • फरवरी 1947 में वावेल की जगह लार्ड माउंटबेटन को वायसराय नियुक्त किया गया । उसने भी कांग्रेस और लीग के बीच समझौता कराने का भरसक प्रयास किया किंतु असफल रहा । अतः निराश होकर उसने एलान कर दिया कि ब्रिटिश भारत को स्वतंत्रता दे दी जाएगी किंतु उसका विभाजन भी होगा ।
  • सत्ता हस्तांतरण हेतु 15 अगस्त का दिन निश्चित किया गया । उस दिन समस्त भारत में खुशियाँ मनाई गई । जब सविधान सभा के अध्यक्ष ने गाँधी जी को ' राष्ट्रपिता ' की उपाधि देते हुए संविधान सभा की बैठक शुरू की तो ' महात्मा गाँधी की जय के नारे से सारा नभमंडल गूँज उठा ।
  • 15 अगस्त 1947 को जब सारा देश आजादी के जश्न में सराबोर था उस समय गाँधी जी 24 घंटे के उपवास पर थे । वे राष्ट्र के विभाजन से आहत थे ।
  • गाँधी जी और नेहरू के आग्रह पर कांग्रेस के द्वारा अल्पसंख्यकों के अधिकारों " पर एक प्रस्ताव पारित किया गया । कांग्रेस ने आश्वासन दिया कि " वह अल्पसंख्यकों के नागरिक अधिकारों के किसी भी अतिक्रमण के विरुद्ध हर मुमकिन रक्षा करेगी । "
  • अनेक इतिहासकारों का मानना है कि स्वतंत्रता के पश्चात के महीनों को गाँधी जी के जीवनकाल का " श्रेष्ठतम क्षण " कहा है ।
  • गाँधी जी जीवन भर स्वतंत्र और अखंड भारत के लिए संघर्ष करते रहे । कुछ कट्टरवादी तत्त्वों को इनका यह आचरण पसंद नहीं था । अत : 30 जनवरी की शाम को गांधी जी की दैनिक प्रार्थना सभा में एक युवक ने उन्हें गोली मार दी ।
  • गांधी जी के कार्यों को समझने हेतु उस समय के उनके लेखन और भाषण महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं । किंतु इनको पढ़ते समय यह ध्यान रखना होगा कि ये किस समय जनता के लिए लिखा गया और किस समय किसी अन्य उद्देश्य के लिए लिखे । या बोले गए हैं ।
  • औपनिवेशिक काल की पुलिस की पाक्षिक रिपोर्ट से यह ज्ञात होता है कि अंग्रेज अधिकारी किसी विरोधी घटना हेतु स्वयं को जिम्मेदार नहीं मानते थे । ब्रिटिश अखबार भी इस तथ्य को प्रतिबिंबित करता है ।
  • महात्मा गाँधी के व्यक्तित्व को समझने हेतु अंग्रेजी तथा विभिन्न भाषाओं में छपने वाले समकालीन अखबार भी एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं । क्योंकि वे महात्मा गाँधी की छोटी - से - छोटी गतिविधियों पर भी नजर रखते थे